A Secret Weapon For Shodashi

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पद्माक्षी हेमवर्णा मुररिपुदयिता शेवधिः सम्पदां या

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥३॥

Shodashi’s mantra enhances devotion and religion, aiding devotees set up a deeper connection for the divine. This gain instills rely on while in the divine procedure, guiding people by challenges with grace, resilience, and a sense of intent inside their spiritual journey.

The essence of such rituals lies while in the purity of intention and the depth of devotion. It isn't simply the exterior steps but the internal surrender and prayer that invoke the divine presence of Tripura Sundari.

क्लीं त्रिपुरादेवि विद्महे कामेश्वरि धीमहि। तन्नः क्लिन्ने प्रचोदयात्॥

ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता check here है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में नहीं जाता है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।

षोडशी महात्रिपुर सुन्दरी का जो स्वरूप है, वह अत्यन्त ही गूढ़मय है। जिस महामुद्रा में भगवान शिव की नाभि से निकले कमल दल पर विराजमान हैं, वे मुद्राएं उनकी कलाओं को प्रदर्शित करती हैं और जिससे उनके कार्यों की और उनकी अपने भक्तों के प्रति जो भावना है, उसका सूक्ष्म विवेचन स्पष्ट होता है।

Goddess Shodashi has a third eye to the forehead. She's clad in crimson costume and richly bejeweled. She sits on the lotus seat laid with a golden throne. She is demonstrated with four arms by which she holds five arrows of flowers, a noose, a goad and sugarcane for a bow.

हस्ते चिन्मुद्रिकाढ्या हतबहुदनुजा हस्तिकृत्तिप्रिया मे

She is also known as Tripura because all her hymns and mantras have 3 clusters of letters. Bhagwan Shiv is considered to generally be her consort.

श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥५॥

श्रीगुहान्वयसौवर्णदीपिका दिशतु श्रियम् ॥१७॥

कर्तुं देवि ! जगद्-विलास-विधिना सृष्टेन ते मायया

स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।

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